११- जन एकता की भाषा हिंदी- रचना ११
एक दिन यूंही बर्बाद हो जाएंगे हम
आदमी से बस याद हो जाएंगे हम
उसके दिल के कैदी रहते रहते
दूनिया से आज़ाद हो जाएंगे हम
आपके सुलूक का यहीं अंजाम होगा
किसी गैर कि उम्मीद हो जाएंगे हम
बुरी है मगर यहीं सच्चाई है जाना
तेरे लबों कि फ़रियाद हो जाएंगे हम
कभी कभी ऐसा लगता है "सौरभ"
खुद के भी नापसंद हो जाएंगे हम।
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 02:59 PM
यहीं की जगह यही होगा sir
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
16-Sep-2022 08:43 PM
बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
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Saurabh Patel
16-Sep-2022 09:53 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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Suryansh
15-Sep-2022 07:46 PM
बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना
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Saurabh Patel
15-Sep-2022 08:38 PM
जी बहुत शुक्रिया आपका
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